Tuesday 19 August 2014

सगुण और निर्गुण ब्रह्म


सगुण और निर्गुण ब्रह्म
 सृष्टीउत्पत्ती के पूर्व ब्रह्म को जाननेवाला न कोई था, ना ब्रह्म को परब्रह्म कहनेवाला कोई था | क्यों की परब्रह्म को पर कहनेवाला अपर कुछ था ही नही | परंतु सृष्टीउत्पत्ती के साथ एक ही परमतत्त्व परा और अपरा सृष्टी में अभिव्यक्त हुए | परा, अपरा सृष्टी के नियंत्रण हेतू वही परमतत्त्व परात्पररुप में उसी परा, अपरा प्रकृति में स्थित रहता है, ठिक उसी प्रकार जैसे कोई सूत्र मोतियों की माला में मोतियों को गुँथे रहती है | परा प्रकृति और अपरा प्रकृति को व्याप्त जो परमात्मतत्त्व है उसेही हम निर्गुण ब्रह्म कहते है , क्युंकी वह सूक्ष्म-स्थूल से परे हेै , दृश्य अदृश्य से परे है , सबमें होकर भी ना होने जैसा है | वही परमेश्वर है, जो कण कण में स्थित होकर कण कण को नियंत्रित करता है, हर जीव में स्थित होकर जीव  के कर्मों का लेखा जोगा रखता है , पवित्र जीव में स्वयंभू होकर कार्यरत होता है, वही यह निर्गुण परमेश्वर है |
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सृष्टीउत्पत्ती के पश्चात जब मनुष्य प्राणी निर्माण हुवा, तब वह तत्कालीन अन्य प्राणीयों की तुलना में अधिक अकलमंद, जिज्ञासू और ज्ञान की ओर आकर्षित होनेवाला था | वह अपने आजूबाजू हो रहे नित्य परिवर्तन को देख रहा था | कही ऋतू बदल रहे थे, तो कही प्राणी जन्म ले रहे थे, तो किसी ओर प्राणी मर रहे थे, इन सारी चीजो पर उसका कोई नियंत्रण नहीं था | वह सोचता था की कौन है इसके पिछे | यह किसी की करनी है या कोई व्यवस्था की यह सब परिवर्तन हो रहा है | यदि योजना है तो किसकी ? और व्यवस्था है तो किसकी ? यदि यह प्रकृति की योजना, व्यवस्था है, तो प्रकृति की योजना, व्यवस्था किसने की ? परिवर्तन तो प्रकृति का स्वभाव है , तो प्रकृति का मूल स्वभाव क्या है जहाँ से इस परिवर्तन की शुरूवात हुयी और अंत होगा ? उसकी सोच ने उसे किसी अनामिक शक्ति पर विश्वास रखने हेतू बाध्य कर दिया की कोई है जो इस परा-अपरा प्रकृति से परे है , जो इस प्रकृति का नियंता, स्वामी या कहे तो मूल स्वभाव, स्वरुप है | उसी अनामिक शक्ति को वह परमेश्वर कहने लगा और उस परमेश्वर को प्रार्थना करने लगा की , 'हे भगवन्, आप कौन हो, कैसे हो, आपका स्वरुप क्या है, आपकी व्यवस्था क्या है, आपकी हमसे कोई अपेक्षा है क्या, हम इस प्रकृतिके परिवर्तन को स्वीकार करे या परिवर्तन का विरोध करे, इससे छुटने का क्या उपाय है ? हे भगवन् आप ही हमारे प्रश्नों का समाधान करे, क्यों की आप ही इन सवालों का निराकरण करने हेतू समर्थ है |' तब ईश्वर ने अत्यंत कृपालु होकर अपने भक्तों को अपने स्वरुप की पहचान कराने स्वयं प्रकट होने का निर्णय लिया | परब्रह्म पुनः ॐकार रुपमें प्रकट हुवा | ॐकार नाद से प्रकट हुए शब्द | वे शब्द थे परमात्मा के | शब्दों में अर्थ था परमात्मा का | वही शब्द आगे जाकर वेद कहलाए | वेदों में क्या था ? वेदों जीव-शिव का ज्ञान था, ज्ञान-विज्ञान था, कर्मयोग-ज्ञानयोग-ध्यानयोग-भक्तियोग इ समस्त विश्व का ज्ञान उन वेदों में समाया हुआ था | इन्हीं वेदों में उस अनामिक शक्ति ने अपनी पहचान परब्रह्म नामसे करायी, इसिलिए हम उस परमात्मा को परब्रह्म नामसे जानते है | यह परमात्मा का निर्गुण, निराकार, अव्यक्त, अक्षय रुप है, जिसे हम निर्गुण परब्रह्म कहते है |
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वेद प्रगट हुए परंतु सामान्य अज्ञानी मनुष्य की आकलनशक्ति उन वेदों को ग्रहण नहीं पायी | इस बात का खयाल उस परमात्मा ने पहलेसे किया था और यही कारण है की उस समय वेदों के रुप में प्रकट होने से पहले ही  परमात्मा ऋषी मुनीयों के रुप में प्रकट हो चुका था | जी हाँ, परमात्मा मनुष्य देह में, एक नहीं अनेक देहों में अवतरित हो चुके थे और जब वेद प्रकट हुए तो उन्हीं ऋषी-मुनियों से वेदों को ग्रहण कर , कंठस्थ कर लोगो तक पहुँचाने का कार्य किया | ऐसे ऋषी-मुनीयों के, राजर्षीयों के रुप में परमात्मा ही अवतरित हुए और होते रहेंगे, इस परमात्मा के रुप को सगुण परब्रह्म कहते है | आज भी परमात्मा सगुण रुप में अवतरित होते है, कहीं ऋषी-मुनीयों के रुप में, कहीं संतों के रुप में , कहीं लोकनेता के रुप में वे अपना कार्य कर रहे है | धर्म संस्थापना और अधर्म का नाश यही सगुण ब्रह्म का प्रयोजन होता है | श्रीराम से लेकर आज विवेकानन्द, सावरकर तक सभी महात्माओं ने यहीं कार्य किया, क्युं की इनका जन्म ही महानतम कार्यों के लिए हुआ था , इनमें ईश्वरी अंश विद्यमान था | हम कितने भाग्यवान है की परमात्मा न केवल सृष्टी का निर्माण करता है अपितु हमारे साथ हमें जीवन जिना सिखाता है, अधर्म से युद्ध करना सिखाता हैै और जीवनरुपी बंधन से मुक्त होना सिखाता हैै | जिस प्रकार खाने के लिए धान्य निर्माण किया, उसी प्रकार हमारी मुक्ति हेतू सगुण परब्रह्म कि योजना उसी परब्रह्म ने की हुयी है | हमें सिर्फ उस सगुण ईश्वर, अर्थात गुरू को शरण जाकर ज्ञान ग्रहण करना है, फिर सहज ही हमारी नांव भवसागर के पार लग जाएगी | जय श्रीराम | जय श्रीकृष्ण |