Sunday, 6 July 2014

माझ्या जीवीची आवडी


आज एक सुंदर अभंग देखते है ।


इस अभंग में संतजन दुसरे भक्तों से कह रहे है,"श्रीहरी को पाना ही पंढरी पाना है अन्यथा नहीं, अपनेे मन को एक ही रंग में रंग लो हरी रंग में और उस हरी के गुणों को अपनालो, यही परिपूर्णतम भक्ति है ।
हमनें पहले अनुभव किया, फिर आप से कह रह है । परंतु जागृति,स्वप्न,सुषुप्ति इन अवस्थाओं में सह मीलन जान नहीं आता , परंतु जो उस आनंद को चखले एक बार फिर कभी न भूले और हरी बन कर रह जाए ।
सगुण और निर्गुण दोनों  एक ही है, यह जान ले वह सगुण  को शरण जाकर निर्गुण को पा लेता है । यह पद्म पद्म युगों का अनुभव है ।"

English :
The only reason behind my existence is to unite my Self in Supreme self.
My mind has taken form of Supreme one and my characteristics are no more different than that of Supreme one. Yes this cannot be experienced in 3 states of Jiva Jagruti, Swapna, Sushupti, but when at the very moment you meet HIM , you meet HIM forever…
The only way to attain this is to learn undistinguished unison of SAgun And Nirgun form of eternal. Sagun are all his incarnations including Ansh,Anshansh, Purna, Paripurna etc. and Nirgun is just only Nirgun...Only by knowing this, one surrenders to Sagun he knows and thus reaches Pandhari. Just as Dnyanoba reached Pandhari by surrendering to Nivruttinath.

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